
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में 1319 मीटर की ऊंचाई पर विख्यात काशी विश्वनाथ मंदिर, पवित्र धाम केदारनाथ मार्ग पर गुप्तकाशी कस्बे में स्थित है. यह केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है. यह तीन प्रमुख काशियों उत्तरकाशी, काशी (वाराणसी) और गुप्तकाशी में से एक है. मान्यता है कि कौरवों और पांडवों में जब युद्ध हुआ तो पांडवों ने कई व्यक्तियों और अपने भाइयों का भी वध कर दिया था तो उसी वध के कारण उन्हें बहुत सारे दोष लग गए थे.
पांडवों को उन्हीं दोषों के निवारण करने के लिए भगवान शिव से माफी मांगते हुए उनका आशीर्वाद लेना था, लेकिन भोलेनाथ पांडवों से रुष्ट हो गए थे क्योंकि उस युद्ध के दौरान पांडवों ने भगवान शिव के भी भक्तों का वध कर दिया था.
उन्हीं दोषों से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने पूजा-अर्चना की और भगवान शंकर के दर्शन के लिए निकल पड़े. भगवान शिव हिमालय के इसी स्थान पर ध्यान मग्न थे और जब भगवान को पता चला कि पांडव इसी स्थान पर आ रहे हैं तो वह यहीं नंदी का रूप धारण कर अंतर्ध्यान हो गए या यूं कहें गुप्त हो गए, इसलिए इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा.
वहीं यहां शिव-पार्वती को समर्पित अर्द्ध नारीश्वर मंदिर भी स्थित है. गुप्तकाशी में मणिकर्णिका कुंड भी है. माना जाता है कि मणिकर्णिका कुंड में गिरने वालीं दो जलधाराएं गंगा और यमुना के रूप में विराजमान होती हैं.