Rudranath: शीतकालीन गद्दीस्थल गोपीनाथ मंदिर पहुंची चतुर्थ केदार रुद्रनाथ की डोली, भक्तों ने किया भव्य स्वागत
Uttarakhand Rudranath Temple Doors Closed: कपाट बंद होने के बाद भगवान रुद्रनाथ की डोली गोपीनाथ मंदिर पहुंची। अब डोली मंदिर में ही विराजमान रहेगी और यहीं उनकी अगले छह महीने तक पूजा होगी।
उच्च हिमालय क्षेत्र में स्थित चतुर्थ केदार रुद्रनाथ मंदिर के कपाट आज विधि-विधान के साथ सुबह छह बजे शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। दोपहर बाद रुद्रनाथ की उत्सव डोली गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर पहुंची। इस दौरान महिलाओं ने रुद्रनाथ भगवान को नए अनाज का भोग लगाया और भजन कीर्तन किए। गोपीनाथ मंदिर में कई गई विशेष पूजाएं की गई। अब छह माह तक भगवान रुद्रनाथ की डोली मंदिर में ही विराजमान रहेगी और यहीं उनकी पूजा होगी।
शुक्रवार सुबह चार बजे ब्रह्म मुहूर्त पर भगवान रुद्रनाथ की पूजा-अर्चना शुरू हुई। पुजारी सुनील तिवारी ने भगवान को दूध, घी, दही का लेप लगाया। शृंगार करने के बाद सुबह की पूजा संपन्न की। आरती और भोग लगाने के बाद सुबह ठीक छह बजे मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। साढ़े सात बजे भक्तों के साथ रुद्रनाथ की उत्सव डोली ने गोपीनाथ मंदिर के लिए प्रस्थान किया। पंच गंगा, पितृधार, पनार बुग्याल होते हुए डोली मोली बुग्याल पहुंची। यहां भगवान रुद्रनाथ को राजभोग (नए अनाजों का भोग) लगाया गया। जयकारों के साथ डोली शाम करीब चार बजे सगर गांव पहुंची।
ग्रामीणों ने ढोल दमाऊं के साथ डोली का भव्य स्वागत किया। यहां भी भगवान को नए अनाज का भोग लगाया गया। दोपहर बाद डोली गोपीनाथ मंदिर पहुंची। यहां रुद्रनाथ की डोली ने भगवान गोपीनाथ से भेंट की। इसके बाद मंदिर में विशेष पूजा करने के बाद देव डोली को मंदिर परिसर में दर्शन के लिए रखा गया। अधिक संख्या में उमड़े लोगों ने भगवान से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लिया। महिलाओं ने भजन कीर्तन किए और नए अनाज का अर्घ्य लगाया।
छह माह तक मंदार के पुष्पों से ढकी रहेगी रुद्रनाथ जी की मूर्ति
चतुर्थ केदार रुद्रनाथ के कपाट होने के दौरान पौराणिक परंपरा के अनुसार भगवान की मूर्ति को मंदार (स्थानीय भाषा में बुखला) के फूलों से ढका जाता है। भगवान की मूर्ति छह माह तक 251 पुष्प गुच्छों से ढकी रहेगी। कपाट खुलने के दिन यह फूल भक्तों को प्रसाद के रूप में बांटे जाते हैं।
शिव के मुख के होते हैं दर्शन
चतुर्थ केदार रुद्रनाथ देश का एकमात्र ऐसा धाम है जहां पर भगवान शिव के मुख के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि पांडव जब स्वर्गारोहिणी की यात्रा पर जा रहे थे तब यहां पर पांडवों को भगवान शिव ने दर्शन दिए थे। तभी से यहां भगवान शिव के मुख के दर्शन होते हैं।