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Uttarakhand: भारत के पांच पीठों में सर्वश्रेष्ठ है केदारनाथ हिमवत वैराग्य पीठ, पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व

केदारनाथ में भगवान आशुतोष के स्वयंभू लिंग के पृष्ठ भाग की पूजा होती है। यहां पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है, इसलिए केदारनाथ को हिमवत वैराग्य पीठ भी कहा जाता है, जो पांच पीठों में श्रेष्ठ है।

भारत के पांच पीठों में केदारनाथ धाम श्रेष्ठ है। यहां पिंडदान और पितरों को तर्पण देने का विशेष धार्मिक महत्व है, इसलिए इसे हिमवत वैराग्य पीठ भी कहा जाता है। समुद्रतल से 11750 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ का नर-नारायण, पांडवों और आदिगुरु शंकराचार्य से संबंध है।

मान्यता है कि नर-नारायण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान आशुतोष ने मानव कल्याण के लिए सदैव केदारनाथ में निवास करने का वचन दिया था। मेरू व सुमेरू पर्वत की तलहटी पर विराजमान केदारनाथ में मंदाकिनी, मधु गंगा, दुग्ध गंगा, सरस्वती व स्वर्ग गौरी जलधाराएं (नदियों) की भूमि है। यहां, मंदिर के चारों तरफ उदक कुंड, रेतस कुंड, अमृत कुंड, हंस कुंड और हवन कुंड हैं, जिसमें तीन कुंड विराजमान हैं, वहीं हंस और हवन कुंड का आपदा के बाद से पता नहीं है।

मान्यता है कि द्वापर युग में महाभारत युद्ध में गोत्र और गुरु हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पांडव भगवान शिव के दर्शन के लिए हिमालय पहुंचे थे। तब शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे और केदारनाथ पहुंच गए। यहां उन्होंने भैंसे का रूप धारण कर लिया और भूमिगत होने लगे। तभी भीम ने भैंसे की पूंछ पकड़ ली, जिससे पृष्ठ भाग ऊपर ही रह गया। इसी पृष्ठ भाग की स्वयंभू लिंग को केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव ने यहां पर पांडवों को दर्शन देकर वंश व गुरु हत्या के पाप से मुक्त किया था।

भगवान आशुतोष के स्वयंभू लिंग के पृष्ठ भाग की पूजा

केदारनाथ में पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है, इसलिए केदारनाथ को हिमवत वैराग्य पीठ भी कहा जाता है, जो पांच पीठों में श्रेष्ठ है। यहां भगवान आशुतोष के स्वयंभू लिंग के पृष्ठ भाग की पूजा होती है। जलाभिषेक के साथ ही दूध और घी का लेपन किया जाता है।

मान्यता है कि केदारनाथ में भक्त और भगवान का सीधा मिलन होता है। जब तक स्वयंभू लिंग पर भक्त घी, चंदन व मक्खन का लेपन नहीं करता, पूजा अधूरी मानी जाती है। केदारनाथ के वरिष्ठ तीर्थपुरोहित श्रीनिवास पोस्ती बताते हैं कि केदारनाथ पहुंचकर शिव भक्त धन्य हो जाते हैं। यहां बाबा के दर्शन से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। नौंवी सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ पहुंचकर मंदिर का पुनरोद्धार किया था। यहां उनका समाधि स्थल भी है।

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